सुप्रीम कोर्ट और एक जवान की 27 साल की लड़ाई – एक प्रेरणादायक संघर्ष की कहानी

प्रस्तावना

आज हम बात कर रहे हैं भारत के सर्वोच्च न्यायालय — सुप्रीम कोर्ट — की। वहां तक पहुंचना आम बात नहीं होती। यह न्याय का वह मंदिर है, जहां देश का आम नागरिक तब पहुंचता है जब हर दरवाज़ा बंद हो जाता है। आज जिस केस की हम बात कर रहे हैं, वह एक ऐसे भारतीय सैनिक की कहानी है, जिसने 27 साल तक अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया और अंततः सुप्रीम कोर्ट से न्याय पाया।

सैनिक: सेवा से पहले ही बलिदान की शपथ

एक सैनिक… मतलब सेना का वो जवान जो आर्मी, नेवी या एयरफोर्स में चाहे किसी भी पद पर हो — सिपाही से लेकर जनरल तक — वो देश सेवा की शपथ के साथ सेना में आता है। वह कहता है,

“मैं अपने प्राणों की आहुति दे सकता हूं, लेकिन देश की रक्षा से पीछे नहीं हटूंगा।”

लेकिन क्या यही सैनिक, जब किसी विभागीय अन्याय का शिकार होता है, तब भी उसे वही सम्मान और सहयोग मिलता है? जवाब कई बार “नहीं” होता है।

एक सच्ची घटना: जब जवान को रिजर्वेशन नहीं मिला

भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के दौरान छुट्टी पर आया एक जवान रिकॉल होने पर तुरंत ड्यूटी पर लौटने लगा। रिजर्वेशन न मिलने के कारण वह जनरल कोच में चढ़ा, वहां भी जगह नहीं मिली, तो रिजर्वेशन कोच में चला गया। वहां उसे टीटी ने पेनल्टी लगाई। जब उसने बताया कि वह ड्यूटी पर जा रहा है, जवाब मिला:

“तो क्या हुआ?”

क्या यही है हमारे जवानों के साथ व्यवहार?

अब आते हैं आज के केस पर – 27 साल की लड़ाई

सेना में भर्ती और डिसचार्ज

  • यह केस एक जवान का है जो 1988 में आर्मी मेडिकल कोर में भर्ती हुआ।
  • 9 साल सेवा के बाद उसे सीजोफ्रेनिया के चलते डिस्चार्ज कर दिया गया।
  • लेकिन उसकी डिसेबिलिटी पेंशन यह कहकर इंकार कर दी गई कि यह बीमारी “Neither attributable to, nor aggravated by military service” (NANA केस) है।

पेंशन के लिए संघर्ष

  • उसने इलाहाबाद, आर्मी रिकॉर्ड ऑफिस, मिनिस्ट्री ऑफ डिफेन्स, और अंततः कोची आर्म्ड फोर्सेस ट्रिब्यूनल तक गुहार लगाई — लेकिन हर जगह से अस्वीकृति मिली।
  • आखिरकार वह जवान पहुंचता है सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

कोर्ट की टिप्पणियां

  1. “27 साल बाद मेडिकल बोर्ड भेजना अन्याय होगा” — कोर्ट ने दो टूक कह दिया।
  2. सामाजिक सुरक्षा कानूनों की व्याख्या लाभकारी ढंग से की जानी चाहिए — ताकि कर्मचारी को अधिक से अधिक लाभ मिल सके।
  3. यदि किसी शब्द के दो अर्थ हों – एक नकारात्मक और एक सकारात्मक – तो सकारात्मक अर्थ चुना जाना चाहिए, जिससे हितग्राही को लाभ मिल सके।

अंतिम निर्णय

  • जवान को डिसेबिलिटी पेंशन देने के आदेश हुए।
  • साथ ही पिछले 3 साल का एरियर भी स्वीकृत किया गया।

इस फैसले का महत्व

यह 31 पन्नों का निर्णय सिर्फ एक व्यक्ति की जीत नहीं, बल्कि हजारों ऐसे सैनिकों की आशा बन गया है जो विभागीय उपेक्षा का शिकार हैं। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी भी बेहद महत्वपूर्ण है:

“जवानों को इस तरह छोटे-मोटे मामलों में सर्वोच्च न्यायालय तक नहीं घसीटना चाहिए।”

निष्कर्ष

जब एक जवान सीमाओं पर देश की रक्षा करता है, तो उसे न्याय के लिए 27 साल तक भटकना न पड़े — यही एक न्यायपूर्ण, सम्मानजनक और कृतज्ञ राष्ट्र की पहचान होनी चाहिए। हमें, हमारे समाज और हमारे तंत्र को यह सोचना होगा कि क्या हम अपने सच्चे नायकों को उनका हक दिला पा रहे हैं?

आपका क्या कहना है? क्या ऐसे केसों में सरकार और विभागों को खुद संज्ञान नहीं लेना चाहिए? कमेंट में बताएं और इस संदेश को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाएं।

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