पेरेंटिंग कोई परफेक्शन का खेल नहीं है। लेकिन अगर आप इस लेख में बताई गई बातों का 50% भी पालन कर पाएं, तो मेरे हिसाब से आप एक बेहतरीन माता-पिता हैं — न तो “अबस्यूजिव” और न ही “वायलेन्ट”।
🌱 बदलाव की शुरुआत बचपन से करें
अगर आपका बच्चा 15 साल का हो गया है, और अब तक उसे हर बात पर मार पड़ी है, तो अचानक बदलाव लाना कठिन हो सकता है। ऐसे में बच्चा काउंटर-रिएक्शन देने लगता है। इसलिए कोशिश करें कि बदलाव की शुरुआत बचपन से हो — टॉडलर एज से ही।
बच्चों को मारना, चिल्लाना, या गालियाँ देना बंद कीजिए — चाहे वो घर हो या बाहर।
क्यों?
क्योंकि बच्चा देखता है, सीखता है और वही दोहराता है।
अगर आप अपनी पत्नी पर चिल्ला रहे हैं, तो बेटा सीख रहा है कि यही व्यवहार ठीक है।
🧠 बच्चे का सर्वाइवल पैरेंट्स की आदतों पर निर्भर करता है
आपके छोटे-छोटे हावभाव, बोलने का तरीका, इमोशनल रिएक्शन — सब कुछ बच्चे की समझ और व्यक्तित्व पर असर डालता है।
उसे मत सिखाइए कि:
- “ऐसे मत बैठो”
- “ऐसे मत खाओ”
- “आंटी क्या सोचेंगी?”
- “बाल ठीक कर लो”,
बल्कि उसे समझने दें कि आत्म-सम्मान सबसे पहले आता है।
🛑 मार से नहीं, समझ से होता है विकास
अगर बच्चा रो रहा है, ज़िद कर रहा है, ज़मीन पर लेट रहा है — तो वो Lower Brain से रिएक्ट कर रहा है।
अगर आप भी चिल्ला दें, थप्पड़ मार दें — तो आप भी Lower Brain से ही काम कर रहे हैं।
परिवार और समाज को Upper Brain से रेस्पॉन्ड करना चाहिए — जहाँ सोच, समझ, संयम और समाधान होता है।
🎯 बच्चे को सिखाने से पहले, उसका स्ट्रेस कम करें
अगर बच्चा पढ़ाई में कमजोर है, तो उसे डांटने से पहले पूछिए — क्या वह किसी स्ट्रेस में है?
जिन्हें हम आलसी या कमजोर समझते हैं, हो सकता है कि वे अंदर से टूटे हुए हों।
- क्या आपने कभी देखा है कि बच्चे की हॉबी क्लास 10वीं के बोर्ड एक्जाम के कारण छुड़वा दी जाती है?
- क्या आपने कभी सोचा है कि 90% मार्क्स लाने की उम्मीद उसके दिमाग पर बोझ बन सकती है?
❌ बच्चों को अपना प्रोजेक्ट न बनाएं
एक बहुत महत्वपूर्ण बात —
बच्चे आपका प्रोजेक्ट नहीं हैं।
आपका करियर, आपकी पहचान बच्चों के रिजल्ट्स पर निर्भर नहीं होनी चाहिए।
बहुत-सी पढ़ी-लिखी माएँ — डॉक्टरेट, MBA या उच्च शिक्षा प्राप्त — शादी के बाद सिर्फ माँ बन जाती हैं। वे अपना सब कुछ छोड़कर बच्चे को ही करियर बना लेती हैं।
और फिर उन्हें लगता है कि अगर बेटा सफल नहीं हुआ, तो “मैं असफल माँ हूँ।”
👉 यही सबसे बड़ा जाल है।
📌 उम्मीदें कम करें, सपोर्ट बढ़ाएँ
बच्चों से उम्मीदें करना गलत नहीं है —
लेकिन उन्हें अपना पूरा जीवन मत बना लीजिए।
आपका जीवन, आपकी पहचान, आपकी खुशी — सिर्फ बच्चे से जुड़ी नहीं होनी चाहिए।
बच्चों को आज़ादी दीजिए, समझिए, सपोर्ट कीजिए। और खुद के लिए भी एक दुनिया बनाईए।
🙏 निष्कर्ष – अगर आप पैरेंट हैं, और इस लेख की बातें आपको सच्ची लगती हैं —
तो इस लेख को अपने परिवार और दोस्तों के साथ ज़रूर साझा करें।
हमारी अगली पीढ़ी का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि हम उन्हें कैसे गाइड, मॉडल और समझ करते हैं।
✍️ लेखक:
बिकाश डे
(करियर एडवाइजर, सामाजिक चिंतक, पैरेंटिंग अवेयरनेस समर्थक)